
मैं इसी उधेड़बुन में पीछले कई दिनों से लगा हुआ हूं कि क्या खेलों में सट्टेबाजी को वैधानिक मान्यता दी जानी चाहिए या नहीं ? वास्तव में यह बहुत जटील प्रश्न है क्यों कि मेरा मानना है कि खेलों में जो सबसे बड़ी बात होती है वह है खेल की भावना, जिससे खेल खत्म होने के बाद भी खिलाडि़यों के बीच कोई विद्वेष की भावना शेष नहीं रह जाती और हम एक स्वस्थ प्रतिस्पिर्धा देख पाते हैं। यही एक भावना है जिससे हम अपने को और अपने देश के सम्मान को भी जोड़ कर देखते हैं।
यदि खेल भावना की जगह आर्थिक प्रतिस्पर्धा स्थान ले लेगी , जब खिलाड़ी अपने देश और देशवासियों के सम्मान और मनोरंजन के लिए न खेल कर आार्थक वजहों से खेलने लगेंगे तो हमारे खेल से जुड़ाव की वजह ही क्या रह जाएगी...