Monday, 20 May 2013

ये कहां आ गये हम.........

www.sarthakics.com ये कहां आ गये हम......... जब मैं छोटा था तब कि दुनियां ही पूरी तरह से अलग थी। दोस्तों के दिल में मास्टर साब के डांट का डर, बाबू जी के घूरते आंख का डर, अम्मा के दुलार की आदत, अक्सर खेलने में शाम को देर हो जाने पर बहिनीयां का चोरी छिपे मेरे लिए दरवाजा खोलना जैसी पता नहीं कितनी घटनाए आज भी अनायास की मेरे आंखों के सामने से घूम जाती हैं. उस समय सोचता कि कब बड़ा हूंगा और कब मुझे पिता जी और मास्टर साहब की डांट से आजादी मिलेगी।   पर अब तो जैसे दुनियां ही बदल गई है, जैसे- जैसे बड़ा हुआ समाज में मिली इस स्वतंत्रता ने तो मुझे इतना भ्रमित कर दिया कि बचपन से सिखाया हुआ संस्कार, रिति-रिवाज सब बस बकवास लगने लगा अगर सोच में रह गई तो...

हिंदी को हिंदी बनाने वालों को धन्यवाद !

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