Sunday 2 June 2013

क्या खेलों में सट्टेबाजी को मान्यता दी जानी चाहिए ?


मैं इसी उधेड़बुन में पीछले कई दिनों से लगा हुआ हूं कि क्या खेलों में सट्टेबाजी को वैधानिक मान्यता दी जानी चाहिए या नहीं ? वास्तव में यह बहुत जटील प्रश्न है क्यों कि मेरा मानना है कि खेलों में जो सबसे बड़ी बात होती है वह है खेल की भावना, जिससे खेल खत्म होने के बाद भी खिलाडि़यों के बीच कोई विद्वेष की भावना शेष नहीं रह जाती और हम एक स्वस्थ प्रतिस्पिर्धा देख पाते हैं। यही एक भावना है जिससे हम अपने को और अपने देश के सम्मान को भी जोड़ कर देखते हैं।
यदि खेल भावना की जगह आर्थिक प्रतिस्पर्धा स्थान ले लेगी , जब खिलाड़ी अपने देश और देशवासियों के सम्मान और मनोरंजन के लिए न खेल कर आार्थक वजहों से खेलने लगेंगे तो हमारे खेल से जुड़ाव की वजह ही क्या रह जाएगी और हम खेल की जगह तो सिर्फ एक व्यापार के रूप में इसे देखेंगे, साथ ही पता नहीं कितनों के परिवारों को भी बनते बिगड़ते देखेंगे, अगर कहीं रह जाएगा तो सिर्फ पैसों की जीत और हार ।
क्या मात्र इस वजह से हम खेलों में सट्टेबाजी को मान्यता दिये जाने की बात कर रहे हैं कि हम इस पर काबू पाने में असमर्थ हैं और ऐसे ऐसे लोगों की संलिप्तता सामने आ रही है जिनसे खेल भावना और विश्वास चोटिल हो रहा है ? और यदि ऐसा है तो हम गलत हैं और कड़े कदम उठाने के जरूरत है न कि इसे मान लेने में  अन्यथा जुआ और खेल की सट्टेबाजी में क्या अंतर रह जाएगा।
खेल और खिलाडि़यों के प्रति जो दीवानगी है उसका क्या होगा जब हम जान रहे होंगे कि ये तो इतना पैसा ले रहा है या ये तो उससे मिला हुआ है, फिर अर्थ ही खेल का क्या रहा जाएगा, जनून का क्या होगा, देश के खिलाडि़यों के प्रति विश्वसनीयता का क्या होगा ? ऐसे में जब सबकुछ पहले से ही निर्णित है तो फिर क्या हम मूर्ख हैं कि टेलीविजन या रेडियों से चिपके रहते हैं।
वह भाई! प्रचार-प्रसार, हमारे द्वारा लाईन लगा कर खरीदे गये टिकट से से कमाई आप करों और एवज में हमें सिर्फ पूर्व निर्णित खेल दिखा कर मूर्ख बनाओ.... ऐसा तो नहीं चलेगा ना!
मै, इसका जिम्मेदार खेल मंत्रालयों, उनसे जुड़े प्राधिकरणों, विभागों सहित उन सबको मानता हूं जिसको इसे संभालने और स्वस्थ मनोरंजन कराने तथा देश को पहचान दिलाने का अधिकार दिया गया है, अब ये सब अगर ये नहीं कर पा रहे तो इसका क्या मतलब सट्टेबाजी को मान्यता दे दी जाये ?
भईया ! अभी तक तो खेलों के आयोंजन में भ्रष्टाचार था अब खेलों में सट्टेबाजी और भ्रष्टाचार है, तो साहब आप सट्टेबाजी को नहीं बल्कि भ्रष्टाचार को ही वैधानिक मान्यता दे दो...... सबकुछ अपने आप सही हो जाएगा !  या फिर खेलों को उसकी विश्वसनीयता और स्वस्थ्य भावनाओं में रहने दें जिससे देश को एक खेल व संास्कृतिक पहचान मिल सके और हमारा भी स्वस्थ्या मनोरंजन हो सके।
धन्यवाद!

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